
अक्षय तृतीया को वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन मनाया जाता है। गर्मियों की धनतेरस कहे जाने वाले अक्षय तृतीया का पर्व बहुत ही खास माना गया है। लोगों का मानना है कि अक्षय तृतीया के दिन से ही हमारे सारे बिगड़े काम बनने लग जाते हैं। पवित्र नदी गंगा के धरती पर आने से धरती और पवित्र हो गयी थी जिसकी वजह से यह दिन हिंदुओं के पावन पर्वों में से एक है। कुछ लोग कहते हैं कि इस दिन माता हमें हमारे अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार फल देती है। किसी ने सच ही कहा है कि आप अपने जीवन में जितना दान करते हैं उस से कई गुना ज्यादा वापस मिलता है, इतना कि शायद आप उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। आज के समय में मनुष्य कोई भी अच्छा कार्य करने से पहले पंडित जी को बुला कर शुभ दिन देखने की इच्छा रखता है, परन्तु अक्षय तृतीया के दिन बिना कुछ सोचे हम कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं। इस दिन भारतीय पौराणिक काल की बहुत सी घटनाएं घटित हुई हैं।
मनाने के कुछ महत्वपूर्ण कारण।
कुछ लोगों की मान्यता है कि इस दिन भगवान् विष्णु छटवी बार धरती पर अवतरित हुए थे। तभी से यह दिन भगवान् परशुराम के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है। वही कुछ भारतियों का मानना है कि इसी दिन भागीरथ गंगा नदी को धरती पर लाये थे जो कि धरती की सबसे पावन माने जानी वाली नदी है जिसकी लोग पूजा भी करते हैं। मान्यता है कि इस दिन पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं। कहा जाता है कि महाकाव्य महाभारत लिखने की शुरुआत भी इसी दिन से हुई थी। महाभारत में अपने निर्वासन के दौरान भगवान कृष्ण ने पांडवों को ‘अक्षय पात्र देते हुए कहा था कि यह पात्र हमेशा असीमित मात्रा में भोजन से भरा रहेगा तथा कोई भी कभी भूखा नहीं रहेगा। इसी दिन दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया था। चीरहरण से बचाने के लिए द्रौपदी को श्री कृष्ण ने कभी न खत्म होने वाली साड़ी का दान दिया। कहा जाता है कि इसी दिन माता अन्नपूर्णा का भी जन्म हुआ था। वृंदावन स्तिथ श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में केवल इसी दिन दर्शन होते हैं क्यूंकि बाकी समय बांके बिहारी जी वस्त्रों से ढके रहते हैं।
ऐसे करें अक्षय तृतीया पर पूजा।
अक्षय तृतीया की पूजा करने के लिए सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ़ सुथरे वस्त्र पहनें। तद्पश्चात भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी जी की प्रतिमा को साफ जल से स्नान कराएं और सूखे एवं साफ कपड़े से प्रतिमा को पोंछकर यथा स्थान पर स्थापित करें। प्रतिमा को अच्छे से स्थापित कर चन्दन और रोली का टीका लगाकर अक्षत अर्पित करें। सर्वप्रथम मौली, माला, पुष्प आदि अर्पित करें फिर दक्षिणा अर्पित करें। तुलसी- जल और नैवेद्य के रूप में मिश्री व भीगे हुए चनों का भोग बनाकर भगवान को अर्पित करें। पूजन करने के बाद अक्षय तृतीया की कहानी सुनने से मन में शांति की भावना उत्पन्न होती है। आरती करने के लिए अच्छी अगरबत्ती का उपयोग अवश्य करें, क्यूंकि कोई भी प्रार्थना या पूजा इसके बिना अधूरी मानी जाती है।