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December 28, 2020श्रद्धया इदं श्राद्धम् (जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है) भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है।
भारतीय वैदिक वांगमय के अनुसार हर व्यक्ति जो इस धरती पर जन्म लेता है वो ३ ऋणों से घिरा होता है, जो निम्नलिखित हैं-
१. देव ऋण
२.ऋषि ऋण
३.पितृ ऋण
जिसमें से पितृ ऋण अहम भूमिका निभाता हैं जो श्राद्ध के रूप में १६ दिनों तक चलते हैं। अगर हम पितृ का ऋण चूका देते हैं तो हमे बाकी सारे ऋणों से मुक्ति मिल जाती है।
महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार मृत्यू के समय कर्ण को चित्रगुप्त ने मोक्ष देने से इंकार कर दिया था। कर्ण ने कहा मैंने तो अपनी सारी सम्पदा दान पुण्य में ही समर्पित की है,फिर मेरे ऊपर ये कैसा ऋण? चित्रगुप्त ने जवाब में कहा- राजन, आपने देव ऋण और ऋषि ऋण से मुक्ति पा ली है लेकिन आपके ऊपर अभी पिता ऋण बाकी है। जब तक आप इस ऋण से मुक्त नहीं होंगे आपको मोक्ष नहीं मिल पाएगा। तब धर्मराज ने कर्ण को फिर से धरती पर जाने की सलाह देते हुए कहा कि आप अपना पितृ ऋण १६ दिन का श्राद्ध रख चूका सकते हैं, फिर ही आपको स्वर्ग की प्राप्ति होगी।
शास्त्रों में कहा गया हैं कि पितरों को प्रसन्न कर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति करना बहुत पुण्य का काम है। श्राद्ध के आखरी दिन को सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं। पूर्ण रूप से ज्ञान न होने पर या किसी और कारणवश आप अगर श्राद्ध नहीं रख पाएं हो तो इस अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध रख सकते हैं। महर्षि पराशर का मत हैं कि देश- काल के अनुसार हवन कुंड तिल, जौ, कुशा तथा मंत्रो से परिपूर्ण कर्म, श्राद्ध होता है। अनेक धर्मग्रंथो के अनुसार नित्य, नैमित्तिक, काम्य , वृद्धि और परवान पांच प्रकार के श्राद्ध बताये गए हैं।
श्राद्ध के दौरान बरतनी चाहिए यह सावधानियां-
१.आपकी किसी भी गलती से अगर पितृदेव रुष्ट होते हैं तो आपको कंगाली या कई बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
२.शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान पितृ लोक के द्वार खुलते हैं और सभी पितर का धरती पर आगमन होता हैं। इसलिए इस समय उनके लिए तर्पण या श्राद्ध किया जाता है, जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस समय में आपके द्वारा किया गया श्राद्ध ना केवल आपके पितरों को, बल्कि ब्रह्मांड में विचरण कर रहे सभी पितरों के लिए मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है।
३.पितृ पक्ष में खाने से लेकर कपड़े पहनने तक में कई सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। कई लोग इन नियमों से अंजान रहते हैं और कुछ ऐसा कर देते हैं जिसे शास्त्रों में निषेध माना गया है।
४.पितरों के लिए श्राद्ध करना इसलिए अनिवार्य बताया गया है क्योंकि इससे उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। अगर आपको उनकी मृत्यु की तिथि याद नहीं भी है तो सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या (पितृपक्ष का आखिरी दिन) के दिन भी तर्पण कर सकते हैं। आप रोजाना भी तर्पण और ब्राह्मण को भोजन करा सकते हैं।
५.पितृ पक्ष के दौरान आपके द्वार पर आने वाले किसी भी अतिथि का अनादर ना करें। इन 16 दिनों में हो सकता है आपके पितर कोई रूप धारण कर आपके द्वार पधार सकते हे।
६.इस दौरान आपको पशु-पक्षी को भी भोजन और जल देना चाहिए।
७.इन 16 दिनों में आप किसी भी प्रकार का बासी खाना ना खाएं और मांस या शराब का सेवन भी ना करें।
८.पितृ पक्ष के दौरान पेड़-पौधे भी ना काटें क्योंकि वे भी सजीव हैं।
९.पितृ-पक्ष में इस बात का भी ध्यान रखें कि ब्राह्मण को केवल मध्याह्म के समय ही भोजन कराएं।
१०.इस दौरान नए वस्त्र धारण करना या खरीदना भी निषेध माना गया है ऐसा करना भी आपको पितृदोष का भागीदार बना सकता है। झूठ बोलना, किसी का बुरा चाहना या करना जैसे अनैतिक काम भी इस दौरान ना करें।