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December 28, 2020हिन्दुओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक गणेश चतुर्थी भी है। यह त्यौहार भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मनाया जाता है परन्तु महाराष्ट्र में इस त्यौहार की एक अलग ही पहचान है। गणपति में गण का अर्थ पवित्रक तथा पति का अर्थ स्वामी होता है, अगर इन्हें एक कर दिया जाये तो यह पवित्रकों के स्वामी गणपति बन जाते हैं। शिवपुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण विधि बताई गई है और गणेशपुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था।
इन लीलाओं का वर्णन मुद्गलपुराण, गणेशपुराण, शिवपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। गणेश जी उन्नति, खुशहाली और मंगलकारी के देवता हैं। जहाँ पर गणेश जी की पूजा अर्चना होती है वहां पर रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ का वास होता है। ऐसे स्थान पर अमंगलकारी घटनाएं और दुःख दरिद्रता नहीं आती इसलिए गणेश जी की पूजा हर घर में होती हैं। लोग अपने घरों में गणेश जी की मूर्ति और तस्वीर लगाकर रखते हैं। वास्तुविज्ञान के अनुसार जिस घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर होती हैं उस घर में रहने वाले की उन्नति होती है।
व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और पार्वती नर्मदा तट पर बैठे थे। वहां देवी पार्वती ने भगवान शंकर से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने को कहा। भगवान शंकर चौपड़ खेलने को तो राज़ी हो गए परन्तु प्रश्न ये था की हार-जीत का फैसला कौन करेगा? इसके जवाब में भगवान शंकर जी ने कुछ तिनके एकत्रित कर एक पुतला बनाया और उसमे प्राण प्रतिष्ठा कर उसे कहा की तुम हार-जीत का फैसला करना। खेल प्रारम्भ हुआ और भाग्यवश पार्वती जी हर बार जीत गई पर अंत में उस पुतले ने शिव जी को विजयी बताया। ऐसा होने पर माता पार्वती उस पुतले से क्रोधित हो उठीं और उसे श्राप दिया की तुम अब लंगड़े एवं कीचड़ में ही रहोगे। तब उस बालक ने माता से कहा की मुझे माफ़ कर दीजिए। यह कह कर माता पार्वती का मन पिघला और उन्होंने उस बालक को कहा की यहां गणेश पूजन के लिए नाग कन्याएं आएगी, उनके कहे अनुसार तुम २१ दिन तक गणेश व्रत करना यह कह कर मात पार्वती शंकर जी के साथ कैलाश पर्वत चली गई। उस बालक ने पूरी श्रद्धा भक्ति से २१ दिन तक व्रत रखा। यह देख गणेश जी उस बालक से प्रसन्न हो गए और उन्होंने उस बालक को मनोवांछित इच्छा प्रकट करने को कहा जिसके चलते उस बालक ने गणेश जी को कहा की मुझे वरदान दे की में अपने पैरों से चल कर अपने माता पिता के पास कैलाश पर्वत पहुंच जाऊं। वहां पहुंच कर उस बालक ने यह पूरी कथा भगवान शंकर को बताई। जब शिवजी ने पार्वती जी को गणेश व्रत की खासियत बताई तब पार्वती जी को उनके पुत्र कार्तिके से मिलने का मन हुआ और उन्होंने भी २१ दिन तक गणेश जी के व्रत रखे और कार्तिके स्वयं पार्वती जी से आ मिलें। माता पार्वती ने दूर्वा, पुष्प और लड्डुओं से गणेश जी की पूजा की। इस व्रत को करने से सबकी मनोकामना पूर्ण होती है।
इन मंत्र उच्चार्णो के साथ गणेश जी की पूजा की जाती है-
गणेश आसन की पूजा- हवन विधि
ॐ भूर्भुव:स्व:गौर्ये नम:,गौरीमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च!
आसन के लिए चावल चढ़ाया जाता है।,
ॐ गणेश-अम्बिके नम:आसनार्थे अक्षतान समर्पयामि!
फिर स्नान के लिए जल चढ़ाया जाता है।,
ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नम:स्नानार्थ जलं समर्पयामि!
फिर दूध चढ़ाया जाता है।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,पय:स्नानं समर्पयामि!
फिर दही चढ़ाया जाता है।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:, दधिस्नानं समर्पयामि!
फिर घी चढ़ाया जाता है।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,घृतस्नानं समर्पयामि!
फिर शहद चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,मधुस्नानं समर्पयामि।
फिर शक्कर चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,शर्करास्नानं समर्पयामि।
फिर पंचामृत चढ़ाया जाता है।। (दूध, दही, शहद, शक्कर एवं घी को मिलाकर)
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,पंचामृतस्नानं समर्पयामि!
फिर चंदन घोलकर चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,गंधोदकस्नानं समर्पयामि!
फिर शुद्ध जल छिड़कें।
स्थापना-
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,शुध्दोदकस्नानं समर्पयामि!
फिर उनको आसन पर विराजमान करें।
फिर वस्त्र चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,वस्त्रं समर्पयामि!
फिर आचमनी जल छोड़ा जाता है,
उसके बाद उपवस्त्र (मौली) चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:
उपवस्त्रं समर्पयामि!
अब हाथ में चावल लेकर गणेश अम्बिका का ध्यान करें।
ॐ भूर्भुव:स्व: सिध्दिबुध्दिसहिताय गणपतये नम:
गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च!
ॐ भूर्भुव:स्व:गौर्ये नम:,गौरीमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च!
आसन के लिए चावल चढ़ाया जाता है।,
ॐ गणेश-अम्बिके नम:आसनार्थे अक्षतान समर्पयामि!
फिर स्नान के लिए जल चढ़ाया जाता है।,
ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नम:स्नानार्थ जलं समर्पयामि!
फिर दूध चढ़ाया जाता है।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,पय:स्नानं समर्पयामि!
फिर दही चढ़ाया जाता है।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:, दधिस्नानं समर्पयामि!
फिर घी चढ़ाया जाता है।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,घृतस्नानं समर्पयामि!
फिर शहद चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,मधुस्नानं समर्पयामि।
फिर शक्कर चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,शर्करास्नानं समर्पयामि।
फिर पंचामृत चढ़ाया जाता है।। (दूध, दही, शहद, शक्कर एवं घी को मिलाकर)
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,पंचामृतस्नानं समर्पयामि!
फिर चंदन घोलकर चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,गंधोदकस्नानं समर्पयामि!
फिर शुद्ध जल डालकर शुद्ध करें।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,शुध्दोदकस्नानं समर्पयामि!
फिर उनको आसन पर विराजमान करें।
फिर वस्त्र चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,वस्त्रं समर्पयामि!
फिर आचमन जल छोड़ा जाता है,उसके बाद उपवस्त्र (मौली) चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:, उपवस्त्रं समर्पयामि!
फिर आचमनी जल छोड़ दे, फिर गणेश जी को यज्ञोपवित (जनेऊ) चढ़ाया जाता है।!
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाभ्यां नम:यज्ञोपवितं समर्पयामि!
फिर आचमनी जल छोड़ा जाता है, फिर चन्दन लगाएं।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,चंदनानुलेपनं समर्पयामि!
फिर चावल चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,अक्षतान समर्पयामि!
फिर फूल-फूलमाला चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,पुष्पमालां समर्पयामि!
फिर दूर्वा चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:, दुर्वाकरान समर्पयामि।
फिर सिन्दूर चढ़ाया जाता है।!
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:, सिन्दूरं समर्पयामि!
फिर अबीर, गुलाल, हल्दी आदि चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि!
फिर सुगंधित (इत्र) चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:, सुंगधिद्रव्यं समर्पयामि!
फिर धूप-दीप दिखाएं।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,धूप-दीपं दर्शयामि!
फिर ऋषि केशाय नम: बोलकर हाथ धोकर नैवेद्य लगाए।
ॐ प्राणाय स्वाहा! ॐ अपानाय स्वाहा! ॐ समानाय स्वाहा!
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:, नैवेद्यं निवेदयामि!
फिर ऋतुफल चढ़ाया जाता है।।
ॐ भूर्भुव:स्व:गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,ऋतुफलानि समर्पयामि!
फिर लौंग-इलायची, सुपारी अर्पित कर, दक्षिणा चढ़ाकर भगवान गणेश जी की आरती कर, परिक्रमा की जाती है। तत्पश्चात भगवान गणेश-अम्बिका से प्रार्थना कर, दाहिने हाथ में जल लेकर पृथ्वी पर छोड़ा जाता है। यह बोलकर अन्य पूज्य गणेशाम्बिके प्रीयेताम न मम! इस प्रकार श्री गणेश जी की पूजन कर अपनी संपूर्ण मनोरथ पूर्ण करें।