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December 28, 2020नवरात्रि के नौ दिन देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। इस व्रत की शुरआत प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना से की जाती है। नवरात्रि के ९ दिन प्रातः, मध्याह्न और संध्या के समय भगवती दुर्गा की पूजा की जाती है। नवरात्रि में हवन और कन्या पूजन करने का रिवाज है। नारदपुराण के अनुसार हवन और कन्या पूजन के बिना नवरात्रि में माँ दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है। नवरात्रि में माँ दुर्गा को लाल रंग के फूल अर्पित करने चाहिए।यह ९ पावन दिन इस वर्ष २९ सितम्बर से ७ अक्टूबर तक मनाए जाएंगे। परम्परागत रूप से हिन्दू धर्म में शराब और गैर शाकाहारी भोजन का उपभोग अशुभ और अपवित्र माना गया है।
नवरात्रि में घट स्थापना का बहुत महत्व है। नवरात्रि की शुरआत घट स्थापना से की जाती है। कलश को सुख समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्रि के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घाट में आवाहन करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगे नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।
कथा
एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था। वह माँ भगवती दुर्गा का परम भक्त था। उसकी एक कन्या थी। ब्राह्मण नियम पूर्वक प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और यज्ञ किया करता था। सुमति अर्थात ब्राह्मण की बेटी भी प्रतिदिन इस पूजा में भाग लिया करती थी। एक दिन सुमति खेलने में व्यस्त होने के कारण भगवती पूजा में शामिल नहीं हो सकी। यह देख उसके पिता को क्रोध आ गया और क्रोधवश उसके पिता ने कहा कि वह उसका विवाह किसी दरिद्र और कोढ़ी से कर देंगे। पिता की बातें सुनकर बेटी को बड़ा दुख हुआ, और उसने पिता के द्वारा क्रोध में कही गई बातों को सहर्ष स्वीकार कर लिया।
अपनी बात के अनुसार उसके पिता ने अपनी कन्या का विवाह एक कोढ़ी के साथ कर दिया। सुमति अपने पति के साथ विवाह कर चली गई। उसके पति का घर न होने के कारण उसे वन में घास के आसन पर रात बड़े कष्ट में बितानी पड़ती थी। गरीब कन्या की यह दशा देखकर माता भगवती उसके द्वारा पिछले जन्म में की गई उसके पुण्य प्रभाव से प्रकट हुईं और सुमति से बोलीं पुत्री सुमति मैं तुमसे बेहद प्रसन्न हूँ, तुम अपनी मनोवांछित इच्छा प्रकट कर सकती हो, इस पर सुमति ने उनसे पूछा कि आप मेरी किस बात पर प्रसन्न हैं? कन्या की यह बात सुनकर देवी कहने लगी- मैं तुम पर पूर्व जन्म के तुम्हारे पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं, तुम पूर्व जन्म में भील की पतिव्रता स्त्री थी।
एक दिन तुम्हारे पति भील द्वारा चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ कर जेलखाने में कैद कर दिया था। उन लोगों ने तुम्हें और तुम्हारे पति को भोजन भी नहीं दिया था। इस प्रकार नवरात्रि के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल पिया इसलिए नौ दिन तक नवरात्रि व्रत का फल तुम्हें प्राप्त हुआ। हे ब्राह्मणी, उन दिनों अनजाने में जो व्रत हुआ, उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर आज मैं तुम्हें मनोवांछित वरदान दे रही हूं। कन्या बोली कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृ्पा करके मेरे पति का कोढ़ दूर कर दीजिये। माता ने कन्या की यह इच्छा शीघ्र पूरी कर दी। उसके पति का शरीर माता भगवती की कृपा से रोगहीन हो गया।
इन सब में सबसे ज़्यादा प्रचलित परम्परागत रूप से किया जाने वाला नृत्य ‘गरबा’ है। गुजरात में इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास से इस नृत्य के द्वारा माँ दुर्गा की अर्चना में किया जाता है। भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इस पर्व का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि के नौ दिन स्त्री एवं पुरुष दोनों ही इस नृत्य में भागीदारी होते है, और अपनी भक्ति को माँ दुर्गा के समक्ष प्रदान करते हैं। उत्साहित भक्तजन इस दिन का साल दर साल इंतजार करते हैं। नवरात्रि की विशेषताओं में यह भी माना गया है कि इन दिनों माँ दुर्गा एवं महिषासुर के बीच घमासान युद्ध हुआ था, जिसके चलते सत्य कि असत्य पर जीत हुई थी। इसलिए यह नौ दिन माँ दुर्गा और उनके भिन्न अवतारों को समर्पित कीए गए हैं। हर दिन के माँ दुर्गा के रूपों या अवतारों को पूजा जाता है जैसे पहले दिन माँ शैलापुत्री, दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी, फिर माँ चंद्रघंटा, माँ कूष्माण्डा, माँ स्कंदमाता, माँ कात्यायनी, माँ कालरात्रि, माँ महागौरी, एवं माँ सिद्धिदात्री।