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December 28, 2020आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। इस व्रत को कोजागिरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा और कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और चन्द्रमा की पूजा की जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण माना जाता है। यह पूर्णिमा शस्योत्सव के लिए भी जाना जाता है। इसी दिन कृष्ण भगवान ने महारास रचाया था।
कथा-
शरद पूर्णिमा की कथा के अनुसार बताया गया है कि एक साहूकार की २ बेटियाँ थी। दोनों ही शरद पूर्णिमा का व्रत रखती थी, परन्तु बड़ी बेटी पूरी विधि विधान से इस व्रत को करती थी वही छोटी बेटी इस व्रत को अधुरा ही निभाती थी। इसके चलते उसके पुत्र का जन्म लेते ही देहांत हो गया। जब उसने पंडितो से सलाह ली तो उन्होंने कहा की तुम पूर्णिमा का व्रत अधूरा ही छोड़ देती थी इसलिए तुम्हें इस पीड़ा से गुज़रना पड़ रहा है। पूर्णिमा का सफल रूप से व्रत करने पर ही तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी।
पंडितों के कहे अनुसार उसने पूर्णिमा का विधिपूर्वक व्रत रखा, फिर भी जब उसको दूसरी संतान प्राप्त हुई तो वह भी जन्म के कुछ दिनों बाद मृत्यु को प्राप्त हो गया। उसने अपने पुत्र को एक पाटे पर लेटा दिया और उस पर कपड़ा ढक दिया। उसने अपनी बड़ी बहन को आमंत्रित किया और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया। बड़ी बहन जैसे ही उस पाटे पर बैठी तो उसका घाघरा बच्चे को लगा और बच्चा रोने लगा। बड़ी बहन के विधिपूर्वक व्रत करने हेतु उस पुत्र को फिर से जन्म प्राप्त हुआ। इस चमत्कार के बाद पुरे गाँव में शरद पूर्णिमा के व्रत को पूर्ण विधि से मनाया जाने लगा।
इस दिन सुबह इष्ट देव की पूजन की जाती है। इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा की जाती है। ब्राह्मणों को खीर भोज कराया जाता है और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान की जाती है। लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है। इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है। रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन किया जाता है। मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है। शरद पूर्णिमा के मौके पर श्रद्धालु गंगा व अन्य पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। स्नान-ध्यान के बाद गंगा घाटों पर ही दान-पुण्य किया जाता है।
देश के कई हिस्सों में इस दिन लक्ष्मी जी को पूजा जाता है क्यूंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था। यह भी माना जाता है कि द्वापर युग में इस ही दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था तब माँ लक्ष्मी राधा के रूप में अवतरित हुई थी। इस दिन खीर का भोग चन्द्रमा को लगाने की प्रथा है। विज्ञान के अनुसार इस दिन चंद्रमा धरती के बहुत करीब होता है, जिससे की चंद्रमा की रौशनी से मिले रासायनिक तत्व फसलों तक पहुंचते हैं।