Zed Black launches Incense Sticks made from recycled Temple flowers in association with Help Us Green
December 28, 2020उत्तराखंड में मनाये जाने वाले कई लोकप्रिय उत्सवों में से एक हरेला पर्व भी है। यह लोकपर्व हर साल ‘कर्क संक्रांति’ को मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार,जब सूर्य मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश करता है ,तो उसे कर्क संक्रांति कहते है। तिथि-क्षय या तिथि वृद्धि के कारण ही यह पर्व एक दिन आगे पीछे हो जाता है।
कुमाऊँ को उत्तराखंड की देव भूमि कहा जाता है और यहीं हरेला पर्व का उत्सव मनाया जाता है। यह खेती से जुड़ा हुआ एक त्यौहार है। इस त्यौहार को सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य का प्रतीक माना गया है। इसी के चलते हरेला मेले का भी आयोजन होता है। इस दौरान भिन्न- भिन्न तरह के पकवान बनते है और प्रसाद के रूप में बाटें जाते हैं।
हरेला कार्यक्रम में पर्वतीय संस्कृति और लोक परम्परा का आयोजन किया जाता है। श्रावण लगने से ९ दिन पहले आषाढ़ में हरेला बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है। इसमें मिट्टी डाल कर गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि ५ या ७ प्रकार के बीजों को बोया जाता है। ४ से ६ इंच लम्बे पौधों को ही हरेला कहा जाता है। हरेला पर्व के दिन इन पौधों को काटा जाता हैं और भगवान को समर्पित कर अच्छी फसलों की कामना की जाती है। खास बात यह भी है कि हरेला वर्ष में ३ बार आता है। लेकिन श्रावण महीने में ही हरेला पर्व को महत्व दिया गया है ।
यह माना जाता है की भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह दिवस पर उत्तराखंड में हरेला पर्व मनाया जाता है। इसके अलावा वह एक पहाड़ी प्रदेश भी है, यह भी माना गया है की पहाड़ों पर भी भगवान शंकर का वास रहता है इसलिए भी उत्तराखंड में श्रावण मास पर पड़ने वाले हरेला पर्व को महत्व दिया गया है।
हरेला का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है की जब भी परिवार में विभाजन होता है तो वहाँ एक ही जगह हरेला बोया जाता है, चाहे परिवार के सदस्य कहीं भी रहते हो। इस तरह यह त्यौहार परिवार को एकजुट रखता है। ऐसा भी माना जाता है की यह त्यौहार नव-जीवन और विकास से जुड़ा हुआ है।
प्रचलित गीत :
जी रया जागि रया आकाश जस उच्च, धरती जस चावक है जया स्यावै क जस बुद्धि, सूरज जस तराण है जौ सिल पिसी भात खाया, जाँठी टेकि भैर जया दूब जस फैलि जया….”
अर्थ :
हरियाला तुझे मिले, जीते रहो, जागरूक रहो, पृथ्वी के समान धैर्यवान,आकाश के समान प्रशस्त (उदार) बनो, सूर्य के समान त्राण, सियार के समान बुद्धि हो, दूर्वा के तृणों के समान पनपो,इतने दीर्घायु हो कि (दंतहीन) तुम्हें भात भी पीस कर खाना पड़े और शौच जाने के लिए भी लाठी का उपयोग करना पड़े।